षटतिला एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो माघ मास के कृष्ण पक्ष में आता है। इस व्रत को करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य प्राप्त होता है। “षटतिला” नाम तिल के छह प्रकारों के प्रयोग से जुड़ा है: तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान। इस व्रत का पालन करने वाले आध्यात्मिक शुद्धता का अनुभव करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं।
षटतिला एकादशी की पूजन सामग्री:
- श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
- पुष्प, पुष्पमाला
- नारियल, सुपारी
- अनार, आंवला
- लौंग, बेर
- अन्य ऋतुफल
- धूप, दीप, घी
- पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी, और शक्कर का मिश्रण)
- अक्षत, तुलसी दल
- चंदन-लाल
- मिष्ठान (तिल से बने हुए)
- शहद
- गोबर की पिंडीका-108 (तिल तथा कपास मिश्रित)
षटतिला एकादशी की विधि:
- पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाएं। इन कंडों से 108 बार हवन करना शुभ माना जाता है।
- उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो उत्तम फल मिलता है। ऐसे दिन व्रत नियमों का कड़ाई से पालन करें।
- स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- दूसरे दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएं।
- तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी का अर्घ्य देकर स्तुति करें।
- इसके पश्चात जल से भरा कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है।
- तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। माना जाता है कि जितने तिल दान किए जाते हैं, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास मिलता है।
षटतिला एकादशी की कथा:
एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से ही षटतिला एकादशी का महत्व पूछा था। भगवान ने उन्हें एक सच्ची घटना सुनाई:
एक ब्राह्मणी नियमित रूप से एकादशी व्रत रखती थी और श्री विष्णु की पूजा करती थी। एक बार उसने कठिन तपस्या की और पूरे महीने व्रत रखा। इससे उसका शरीर शुद्ध हो गया। लेकिन उसकी एक बुरी आदत थी – वह कभी किसी को भोजन दान नहीं करती थी।
एक बार खुद भगवान विष्णु साधारण साधु के वेश में उसके आश्रम आए। ब्राह्मणी ने उन्हें भोजन के बदले में मिट्टी का एक टुकड़ा दिया। विष्णुजी कुछ न कहकर चले गए।
जब ब्राह्मणी को मोक्ष प्राप्त हुआ और वह वैकुण्ठ धाम पहुँची, तो उसने अपना आश्रम खाली और केवल एक आम का पेड़ पाया। वह भगवान से नाराज हुई कि उन्होंने उसके साथ अन्याय किया।
तब भगवान ने मंद स्वर में बताया कि वह साधु के रूप में उनके आश्रम आए थे और भोजन माँगा था, पर उन्हें मिट्टी का टुकड़ा मिला था। ब्राह्मणी को पछतावा हुआ कि उसने गर्व में आकर दान नहीं दिया। उसने गलती स्वीकार की और भगवान से क्षमा मांगी। भगवान विष्णु ने कहा कि क्योंकि उसने नियम से एकादशी व्रत किया था और उनकी पूजा की थी, इसलिए उसे शुभ फल मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि उसे अगले जन्म में एक समृद्ध परिवार में जन्म लेना होगा और दान की महिमा को समझना होगा।
इस कहानी से पता चलता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने के अलावा दान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। तिल का दान और अन्य दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
षटतिला एकादशी के लाभ:
- पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति
- आध्यात्मिक शुद्धता और मोक्ष की प्राप्ति
- सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति
- मनोवांछित फल की प्राप्ति
- रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ
सावधानियां:
- एकादशी तिथि के दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। फलाहार लिया जा सकता है।
- क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों का त्याग करना चाहिए।
- झूठ नहीं बोलना चाहिए और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।
षटतिला एकादशी का व्रत सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। आस्ट्रो प्रिया (Astro Priya)आपको सभी प्रकार की ज्योतिष परामर्श और सेवाएं प्रदान करती है। अब तकनीकी उन्नति के साथ अपने सवालों का समाधान प्राप्त करने के लिए +91 96240 31370 पर कॉल बुक करें। आप हमसे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर संपर्क करने के लिए DM कर सकते हैं। हमारे आधिकारिक पेजों का लिंक निम्नलिखित है:
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