हिंदू धर्म में चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाने वाली ‘हनुमान जयन्ती’ का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव ने ‘हनुमान जी’ के रूप में अपना ग्याहरवाँ अवतार लिया था, जो प्रभु श्रीराम के परम भक्त और सहायक थे। हिंदू इस पावन अवसर को धूमधाम से मनाते हैं, मंदिरों और घरों में हनुमान जी की विशेष पूजा होती है, और बड़ी शोभायात्राएं निकलती हैं, जिनमें लोग हनुमान जी की मूर्तियों और पताकाओं के साथ नगर परिक्रमा करते हैं।
हालांकि, सोशल मीडिया पर इस दिन को लेकर एक बहस चलती है कि क्या हमें हनुमान जी की जन्मतिथि को ‘जयन्ती’ कहना चाहिए या ‘जन्मोत्सव’? कुछ लोग तर्क देते हैं कि ‘जयन्ती’ शब्द केवल मृत व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि हनुमान जी चिरंजीवी हैं और आज भी धरती पर मौजूद हैं। उनका मानना है कि हनुमान जी के जन्मदिन को ‘जन्मोत्सव’ कहना चाहिए, क्योंकि यह एक उत्सव है।
लेकिन जब हम शास्त्रों और संस्कृत व्याकरण की गहराई में जाते हैं, तो पाते हैं कि ‘जयन्ती’ शब्द का अर्थ केवल मृत व्यक्तियों से नहीं जुड़ा है। स्कंद पुराण के अनुसार, “जो जय और पुण्य प्रदान करे उसे ‘जयन्ती’ कहते हैं।” इसके अलावा, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन को भी शास्त्रों में ‘जयन्ती’ कहा गया है।
स्कंद पुराण में एक श्लोक है: “जयन्त्याम उपवासश्यच महापातकनाशन:। सर्वै कार्यो महाभक्त्या पूजनीयश्य केशव:।।” इसका अर्थ है कि श्रीकृष्ण जयन्ती का व्रत महापातक का विनाश कर देता है। अत: भक्तिपूर्वक यह व्रत करते हुए भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिए। विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि रोहिणी नक्षत्र संयुक्त जन्माष्टमी को ‘जयन्ती’ कहा जाता है।
इसके अलावा, भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जन्म को दिव्य बताया है। उन्होंने चौथे अध्याय के नौवें श्लोक में कहा है: “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वत:।” अर्थात “अर्जुन, मेरा जन्म और कर्म दोनों ही दिव्य हैं।”
अब यदि हम हनुमान जी की स्थिति पर विचार करें, तो क्या उनका जन्म भी दिव्य नहीं है? वे तो स्वयं शिवजी के ग्याहरवें अवतार हैं, जिन्होंने प्रभु राम की सेवा करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया। आज भी वे धरती के संरक्षक हैं और कलयुग के अंत तक रहेंगे। ऐसी स्थिति में, उनके जन्मदिन को ‘जयन्ती’ कहना क्या गलत है?
इसलिए, ‘जयन्ती’ शब्द का प्रयोग हनुमान जी के जन्मदिन के लिए करना गलत नहीं है। साथ ही, ‘जन्मोत्सव’ शब्द का भी प्रयोग उचित है, क्योंकि हनुमान जी के अवतरण दिवस को हिंदुओं द्वारा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। शहरों में शोभायात्राएं निकलती हैं, घरों में हनुमान जी की पूजा होती है, और लोग उनकी मूर्तियों और पताकाओं के साथ नगर परिक्रमा करते हैं। यह दिन वास्तव में एक उत्सव है।
इस प्रकार, न तो ‘हनुमान जयन्ती‘ में कोई समस्या है और न ही ‘हनुमान जन्मोत्सव‘ में। दोनों शब्दों का प्रयोग उचित है, और हमें इस पावन अवसर को आनंद, भक्ति और उत्साह के साथ मनाना चाहिए। हमें इस दिन को हनुमान जी के जीवन और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। हनुमान जी की भक्ति और उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए, जैसे वफादारी, बलिदान, विनम्रता और परोपकार की भावना। यही सच्ची उनकी उपासना है।